आमिर खान के टीवी प्रोग्राम 'सत्यमेव जयते' में जो मुद्दे उठाए जा रहे हैं, दिल को छू रहे हैं. कन्या भ्रूण हत्या, महिलाओं पर अत्याचार, बच्चों के साथ ज्यादती, सभी संवेदनशील मुद्दे हैं और दर्शकों के दिल पर लगे हैं. काफी चर्चा भी हुई. लगा कि कोई इन्कलाब आएगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ. दावत ने लिखा है कि अवाम के जज्बात को अपील करने वाली ऐसी मुहिमें पहले भी छेड.ी गई हैं लेकिन कुछ दिनों बाद दम तोड. गईं. क्योंकि अवाम में भूलने और अपने छोटे -छोटे हित साधने की आदत जड. जमाए हुए है. पेट्रोल की भयानक महंगाई का मामला भी कुछ ऐसा ही है. कंपनियां घाटे का रोना रोकर अपना मुनाफा बढ.ाती हैं. इस खेल में सरकार भी शामिल है, कंपनियों की बड.ी हिस्सेदार वही है. उसकी मर्जी के बिना कोई फैसला नहीं होता. वह वहां भी कमाई करती है और बाहर टैक्स के मज़े भी लूटती है. पेट्रोल पर 35फीसदी तक टैक्स लगता है. सरकार की कमाई का यह बड.ा जरिया है. मज़ेदार बात ये है कि इस खेल में सिर्फ सत्तारूढ. दल ही शामिल नहीं हैं, विरोधी दल भी शामिल हैं जो सड.कों पर जन हित के दर्द का नाटक कर जनता की संपत्ति तहस-नहस कर रहे हैं. वे अपने -अपने राज्यों में पेट्रोल से मलाई निकाल कर खा रहे हैं. आयातित क्रूड ऑयल जब भारतीय तट पर पहुंचता है तो उसकी कीमत करीब 42 रुपए प्रति लीटर होती है. लेकिन पेट्रोल पंप तक पहुंचते -पहुंचते इस पर केंद्र सरकार, राज्य सरकार और मनपा का बोझ बढ.ता जाता है जो जनता को चुकाना पड.ता है 82 रुपया. यानी असल का दुगना. अगर विरोधी दलों का मूल्य वृद्धि का दर्द सच्चा है, वाकई वे जनता का दु:ख दूर करना चाहते हैं तो भाजपा शासित राज्य अपने- अपने टैक्स हटा क्यों नहीं देते? सरकार को धमकाने वाली ममता बनर्जी अपने राज्य में वैट और चुंगी हटा क्यों नहीं देतीं? दरअसल विरोधी भी हित साधना चाहते हैं. और वह भी डबल. एक जनता का सर्मथन पाना और दूसरा टैक्स की कमाई से खजाना भरना. बढ.ोत्तरी में से कुछ कमी का नाटक राजनीति का तीसरा हित साधने के लिए है. जनता का गुस्सा कुछ कम हो जाएगा और बाद में वह सब भूल जाएगी. मीडिया भी तब तक कोई नया सामान बेचने में लग जाएगा. दिल को लगी बिसर जाएगी
इमरजेंसी से बदतर
मोदी राज को इमरजेंसी से बदतर करार दिया जा रहा है. नहीं, कांग्रेस ये साहस नहीं कर सकती. मोदी की पार्टी के ही कुछ बडे. नेताओं ने ये बात कही है. उर्दू टाइम्स ने केशु भाई पटेल की अगुआई में चल रही भाजपा और संघ नेताओं की बैठकों के हवाले से कहा है कि पूर्व केन्द्रीय मंत्री कांशीराम राणा, पूर्व मुख्यमंत्री सुरेश मेहता, पूर्व गृहमंत्री गोवर्धन जड.ाफिया आदि ने हाथ मिला लिया है. सुरेश मेहता ने कहा कि मोदी राज से इमरजेंसी बेहतर थी उसमें आतंक का ये आलम नहीं था. ऐसी हिटलरी नहीं थी. ये लोग गुजरात में भाजपा के मजबूत खंभे हुआ करते थे. लेकिन मोदी ने खुद को सुरक्षित करने के लिए इन सबको हाशिए पर धकेल दिया. मेहता और जड.ाफिया ने अपनी राजनीतिक पहचान बनाए रखने के लिए अपने -अपने संगठन बना लिए हैं, केशु भाई पिछले चुनाव से ही मोदी को तानाशाह कहते आ रहे हैं. उन्होंने अपनी पटेल बिरादरी को लामबंद भी किया था लेकिन ऐन वक्त पर पता नहीं किस दबाव या भय में पीछे हट गए थे. अब चंद माह बाद फिर चुनाव होने वाले हैं तो वे पटेलों की सभाएं ले रहे हैं. इस बार बाकी नाराज़ नेता भी उनके साथ जुट रहे हैं. इस बार की खास बात ये भी है कि पूर्व प्रांत प्रचारक भास्कर राव दामले भी इनके साथ देखे जा रहे हैं और माना जा रहा है कि संघ का भी एक गुट मोदी के खिलाफ है. अभी कहना कठिन है कि मोदी इन सब को किस तरह ठिकाने लगाएंगे. फिलहाल तो उन्होंने राष्ट्रीय महासचिव संजय जोशी को ठिकाने लगाया है. वो दरअसल अपना दिल्ली का रास्ता साफ कर रहे हैं मगर वहां आडवाणी और सुषमा स्वराज जैसे खंभे भी गाडे. हैं. इन दोनों ने दबंगई के साथ, मुंबई आए मोदी के साथ रैली में हिस्सा नहीं लिया. बाद में आडवाणी ने गडकरी को निशाना बनाकर मोदी को अपने तेवर दिखाए. बहरहाल भाजपा में गुजरात से लेकर कर्नाटक, राजस्थान और दिल्ली तक जूतम पैजार चल रही है. कांग्रेस इससे खुश हो रही होगी लेकिन क्षेत्रीय दलों को ज्यादा खुश होना चाहिए. क्योंकि मतदाताओं के पास वे ही विकल्प बचेंगे. बशर्ते वे अपनी पकड. और विश्वसनीयता को कायम रख सकें. और अंत में
रहा न याद मुझे जिंदगी का चेहरा भी
कहीं मिले भी तो शायद दुआ सलाम न हो
सभी कुछ हो रहा है इस तरक्की के जमाने में
मगर ये क्या गजब है आदमी इनसान नहीं होता
जमीर बेचने वालों ने इंतहा कर दी
बुझे चिराग को भी आफताब लिखने लगे
शहर के आईने में ये मद भी लिखी जाएगी
जिंदा रहना है तो कातिल की सिफारिश चाहिए
- चार अशआर साभार
इमरजेंसी से बदतर
मोदी राज को इमरजेंसी से बदतर करार दिया जा रहा है. नहीं, कांग्रेस ये साहस नहीं कर सकती. मोदी की पार्टी के ही कुछ बडे. नेताओं ने ये बात कही है. उर्दू टाइम्स ने केशु भाई पटेल की अगुआई में चल रही भाजपा और संघ नेताओं की बैठकों के हवाले से कहा है कि पूर्व केन्द्रीय मंत्री कांशीराम राणा, पूर्व मुख्यमंत्री सुरेश मेहता, पूर्व गृहमंत्री गोवर्धन जड.ाफिया आदि ने हाथ मिला लिया है. सुरेश मेहता ने कहा कि मोदी राज से इमरजेंसी बेहतर थी उसमें आतंक का ये आलम नहीं था. ऐसी हिटलरी नहीं थी. ये लोग गुजरात में भाजपा के मजबूत खंभे हुआ करते थे. लेकिन मोदी ने खुद को सुरक्षित करने के लिए इन सबको हाशिए पर धकेल दिया. मेहता और जड.ाफिया ने अपनी राजनीतिक पहचान बनाए रखने के लिए अपने -अपने संगठन बना लिए हैं, केशु भाई पिछले चुनाव से ही मोदी को तानाशाह कहते आ रहे हैं. उन्होंने अपनी पटेल बिरादरी को लामबंद भी किया था लेकिन ऐन वक्त पर पता नहीं किस दबाव या भय में पीछे हट गए थे. अब चंद माह बाद फिर चुनाव होने वाले हैं तो वे पटेलों की सभाएं ले रहे हैं. इस बार बाकी नाराज़ नेता भी उनके साथ जुट रहे हैं. इस बार की खास बात ये भी है कि पूर्व प्रांत प्रचारक भास्कर राव दामले भी इनके साथ देखे जा रहे हैं और माना जा रहा है कि संघ का भी एक गुट मोदी के खिलाफ है. अभी कहना कठिन है कि मोदी इन सब को किस तरह ठिकाने लगाएंगे. फिलहाल तो उन्होंने राष्ट्रीय महासचिव संजय जोशी को ठिकाने लगाया है. वो दरअसल अपना दिल्ली का रास्ता साफ कर रहे हैं मगर वहां आडवाणी और सुषमा स्वराज जैसे खंभे भी गाडे. हैं. इन दोनों ने दबंगई के साथ, मुंबई आए मोदी के साथ रैली में हिस्सा नहीं लिया. बाद में आडवाणी ने गडकरी को निशाना बनाकर मोदी को अपने तेवर दिखाए. बहरहाल भाजपा में गुजरात से लेकर कर्नाटक, राजस्थान और दिल्ली तक जूतम पैजार चल रही है. कांग्रेस इससे खुश हो रही होगी लेकिन क्षेत्रीय दलों को ज्यादा खुश होना चाहिए. क्योंकि मतदाताओं के पास वे ही विकल्प बचेंगे. बशर्ते वे अपनी पकड. और विश्वसनीयता को कायम रख सकें. और अंत में
रहा न याद मुझे जिंदगी का चेहरा भी
कहीं मिले भी तो शायद दुआ सलाम न हो
सभी कुछ हो रहा है इस तरक्की के जमाने में
मगर ये क्या गजब है आदमी इनसान नहीं होता
जमीर बेचने वालों ने इंतहा कर दी
बुझे चिराग को भी आफताब लिखने लगे
शहर के आईने में ये मद भी लिखी जाएगी
जिंदा रहना है तो कातिल की सिफारिश चाहिए
- चार अशआर साभार
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